अस्पृशता हा हिंदू धर्मावरील कलंक नसून, तो आमच्या नरदेहावरील कलंक आहे. यासाठी, तो धुवून काढायचे पवित्र कार्य आमचे आम्हीच स्वीकारले आहे.- डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर | कभी हमारा अपना कोई धर्म था| उस धर्म कि धारा सुखी नाहि है| संतो ने उसे प्रवाहित रखा है. गुरु रविदास लिख गये है| धर्म के सार को| वे नया धर्म दे गये है| उस पर चलो| - बाबू जगजीवन राम

Saturday, February 15, 2014

आज अस्पृश्यता खत्म हो चुकी है? जय रविदास, जय भीम, जय गुरूदेव बोलो!


जय रविदास, जय भीम, जय गुरूदेव बोलो!

आज अस्पृश्यता खत्म हो चुकी है. अस्पृश्य समाज को भारतीय संविधान का संरक्षण प्राप्त है  फिर भी हमारे चर्मकार समाज का प्रतिनिधीत्व करने के लिए सरकारी आरक्षीत कोटा संभालने वाले सरकारी अधिकारी, विधायक, सांसद, राजनितिक पार्टयिों के नेंता, समाज के नेता केवल चमार बस्ति में आने के बाद चिल्लाते हुए दिखाई देते है. लेकिैन उनके सरकारी कार्यालयों, विधानसभा, उनकी पार्टी में चर्मकार समाज के बारे में एक शब्द भी नही बोलते है. वहा पर उन्हे जाती की शर्म आती है. इसीलिए संपूर्ण भारत के गांवकस्बो में चर्मकार समाज बडे पैमाने पर मतदाता होने के बावजूद उसे राष्ट्रीयस्तर पर कहीं भी अस्तित्व दिखाई नही देता है. हमारे समाज के सामाजिक, राजनतिक अस्तित्व को प्रस्तापित करने के लिए जाति मत छिपाओ अपनी जाति का नाम बिना शर्माए हुए बताओ और जय रविदास, जय भीम, जय गुरूदेव बोलो! 
गुरू रविदास महाराज कहते है ष्टद्धr(39)मेरी जाती भी ओछी पात भी ओछा, आछा कसब हमारा.ष्टद्धr(39)ष्टद्धr(39) उच्च दर्जे की मेरी चमार जाति है. मेरा आध्यात्मिकता का मार्ग भी ऊंचे दर्जे का है और मरे हुए जानवरों के बेकार चमडे से बहुउपयोगी सुंदर हस्तकला बनाने का ऊंचा कार्य मेरे समाज का कौशल्य कलाकरी भी ऊंचे दर्जे की ही है. यह कहकर चर्मकार जाति का, व्यवसाय का गौरव गुरु रविदासजी महाराज ने किया, परंतु हिन्दू धर्मशास्त्राहने अस्पृश्य ठहराने से कलंकित हुई जातियो को चिपककर रहना न पडे इसलिए ष्टद्धr(39)मेरी जाती कमीनी, पांती कमीनी ओछा जनम हमारा.ष्टद्धr(39) उच्च कुल मे जन्मे हमारे चर्मकार समाज को और हमारे व्यवसाय को अस्पृश्य जाति-पाति का कलंक लगाया है. यह कहकर गुरू रविदास कहते है, ष्टद्धr(39)जात पात के फेरे मही, उरझी रहयी सब लोग, मनुष्य को खात हयी रविदास जातका रोग.ष्टद्धr(39) जाति-पाति के चक्रव्यूह मे फंसने से रोग पीडित मृतवत स्वाभिमान शून्य हुए चर्मकार समाज में जाति-पाति का चक्रव्यूह तोडकर बाहर निकलने की ऊर्जा, शक्ति और स्वाभिमान जागृत होना चाहिए और जाति-पाति के विरुद्ध बगावत करने के लिए चर्मकार समाज में शक्ति निर्माण होने कूल, वर्ण बाष्टद्धr(39), अस्पृश्य, जाति-पाति का अंत करने के लिए स्वाभिमान चर्मकार समाज में निर्माण होना चाहिए इसलिए गुरू रविदासजी महाराज ने चमार जाति का अर्थात चर्मकार समाज का गौरवपूर्ण इतिहास बताया है.
जय रविदास, जय भीम, जय गुरूदेव बोलो!
गुरु रविदासजी कहते है, ष्टद्धr(39)जनम जात कू छाडि करि करनी जात प्रधान । इहयो चासा धर्म कहे रविदास बखान ।ष्टद्धr(39)ष्टद्धr(39) हमारे समाज के जन्म के साथ ही जोडे गऐ अस्पृश्य जाति का त्याग कर गुरू रविदासजी ने कथन किया हुआ सच्चे धर्म को स्वीकार करने के सिवाय चर्मकार समाज को सामाजिक प्रतिष्ठा प्रमुखता नही मिलेगी. आगे ष्टद्धr(39)बेगमपुरा शहर को नाउ।ष्टद्धr(39) अपनी रचना में गुरु रविदास कहते है, ष्टद्धr(39)कहि रविदास खलसा चमारा, जो हम सहरी सू मितू हमारा ।ष्टद्धr(39) हमारे साथ चिपके हुए चमार जाति का अंत कर स्वतंत्र रविदासी संस्कार के बेगमपुरा शहर, वतन अर्थात मानव के दुख मुक्ति का मार्ग रहे स्वतंत्र आध्यात्मिक रविदासिया धर्म स्वीकार कर मित्र साथी बनाने का आह्वान सभी चर्मकार बंधुओं से गरु रविदासजी महाराज करते हैं.

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