भगवान
रविदासजी महाराज के नाम पर हमारा चर्मकार समाज एक संघ हो सकता है |
अब हमे दलित क्यों कहते हो? ऐसा पूछने पर बहिष्कृत अस्पृश्य गरीब दुर्बल है इसलिए
दलित है. हमारा मुख्यमंत्री हुआ भी तो उसे दलित मुख्यमंत्री, उपप्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, मंत्री, डॉक्टर, इंजीनिअर,
उद्योगपती हुआ भी तो उसे दलित कहकर बडी चालाकी से हमारे समाज की
गरीबी एवं दुर्बलता को आगे कर हमारे समाज का नामकरण दलित किया गया है. लेकिन साली,
माली, कोली, भंडारी,
लुहार, बढई, धोबी,
कुम्हार जैसे और अन्य सवर्ण हिन्दू जाति हमसे भी अधिक गरीब है. फिर
भी उन्हे दलित नही कहा जाता, कारण वे सवर्ण हिन्दू है. इसलिए
उन्हे हिन्दूजन कहा जाता है. इसी से हमारे हिन्दूस्तान में हिन्दूओं को हिन्दूजन,
मुसलमान को मुसलमान, बौद्ध को बौद्धजन कहा
जाता है. पर हमारा चर्मकार समाज हिन्दू है तो हमें दलित हरिजन क्यों कहा जाता है?
हजारों सालों की परंपरा वाले भगवान मनु के
सनातनी हिन्दू धर्म अर्थात ब्रह्माण, क्षेत्रीय,
वैश्य, शूद्र और अति शूद्र अर्थात सतगुण,
तमोगुण, रजोगुण, गुणहीन
व अस्पृश्य यह गुण विशेष रखने वाले मनुष्य स्वभाव के अनुसार हिन्दू समाज का
वर्गीकरण है. सवर्ण हिन्दू समाज की 3527 जातियां और बारह
बलुतेदार है. पर वर्णबाष्टद्धr(39) अस्पृश्य समाज की 11०8 जातियां और आलुतेदार है. सवर्ण बलुतेदारों को
उनके अधिकार का बलुत दिया जाता था. पर अस्पृश्य अलुतेदारों को भीक दी जाती थी. क्योंकि
अस्पृश्यों का हिन्दू समाज मे समावेश किया भी गया फिर भी हिन्दू धर्मशास्त्राह के
अनुसार केवल सवर्ण ही हिन्दू है इसलिए अस्पृश्यों को हरिजन, दलित
समझकर भीख दी जाती थी.
शून्य की खोज भारत में हुई. शून्य से गणित
की निर्मिती हुई. गणित का उपयोग कर पिन से लेकर परमाणु बम तक सभी खोज सर्वप्रथम
परदेशी वैज्ञानिकों ने की. बुद्धि का स्रे रहे भारत में सिर्फ ग्रह तारों, कुंडली, हस्तरेखा और भविष्य बताने
के लिए गणित का उपयोग किया गया. किसी एक वर्ण अथवा जाति ने नही परंतु समस्त हिन्दू
समाज ने प्रगतिशील ज्ञान के दरवाजे धर्म, धर्मशास्त्र और
पुराणों के आगे जाकर कुछ भी नही ऐसा समझकर बंद कर रखे थे. ऐसा होने के बावजूद इसी
धर्म, धर्मशास्त्र के अनुसार हिन्दू धर्म की जिम्मेदारी जिन
पर है वे ब्राह्मण, पंडीतों ने हिन्दू धर्म के नित नियम
बताने के लिए ही अपनी काई पीढियां लगा दी और 8०० साल
मुसलमानों की सत्ता और 15० साल अंग्रेजो की गुलामी के समय
हिन्दू धर्म परम्पराओं का रक्षण किया तथा सवर्ण हिन्दू धर्म, वर्ण, जाति व्यवस्था, एक स्ांघ
मजबूत होने की पुष्टि की.
संपूर्ण भारत में 11०8 जाितयों मे विभक्त, असंघठित अस्पृश्य समाज की अवस्था, मां खाना देती
नहीं और बाप भीख मांगने देता नहीं, ऐसी हुई थी. मुसलमान,
हिन्दू समझकर अस्पृश्यों पर अत्याचार करते थे और सवर्ण हिन्दू
अस्पृश्य जाति का बताकर उन पर अत्याचार करते थे इससे मुस्लिम धर्म स्विकार कर
राजाश्रय मिला तो मुसलमानों के अत्याचारों से मुक्ति मिलेगी और सवर्ण हिन्दू
धर्मीयो के अत्याचारों से हमेशा के लिए छूटकारा मिलेगा इसी कारण हजारों अस्पृश्यों
ने मुस्लिम धर्म स्वीकार किया. आगे अंग्रेजों के काल में वही अनुभव लेते हएॅ
हजारों अस्पृश्यों ने क्रिष्टद्धr(155)न धर्म स्वीकार किया
और आज भी अनेक अस्पृश्य लोग ईसाई धर्म का सहारा ले रहे हैं. उसे रोकना आवश्यक है
इसलिए भारतीय संस्कृति के आधार सत परम्परा की विरासत और हिन्दू धर्म के ही एक अंग
के रूप में उदयोन्मुख भगवान रविदासजी का आध्यात्मिक रविदासिया धर्म समस्त अस्पृश्य
समाज में फैलाने सवर्ण हिन्दू धर्मायों को मदत का हाथ आगे कर हिन्दू धर्म के
अस्पृश्यता का कलंक मिटाना चाहिए. उस समय संत महापुरुषों ने अस्पृश्यों के प्रति
आस्था, प्रेम, करुणा और दया भाव व्यक्त
कर अस्पृश्यों का कुछ अनुपात में धर्मातर को रोका अन्यथा संपूर्ण भारत के
अस्पश्यों का मुस्लिम, क्रिष्टद्धr(155)न धर्म में धर्मातर होकर हिन्दू धर्म की अस्पृश्यता हमेश के लिए नष्ट हो
गई होती. अस्पृश्यों के धर्मातर को रोकने संत, महापुरुषों ने
अस्पृश्यता को लेकर दयाभाव व्यक्त कर अस्पश्यों दलितों के सामाजिक, शैक्षणिक, आíथक उन्नति के लिए उल्लेखनीय कार्य किया.
इसका इतिहास गवाह है परंतु अस्पृश्य जाति में जन्मे हुए और अस्पृश्यता की
प्रत्यक्ष आंच का अनुभव लिए हुए गुरु रविदासजी महाराज और परमपूज्य डा. बाबासाहेब
अम्बेडकर ने अस्पृश्यों को भारतीय समाज व्यवस्था में समान सामाजिक दर्जा और
प्रतिष्ठा दिलाने के लिए हिन्दूवर्ण व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष कर नया इतिहास
रचा.
ष्टद्धr(39)ष्टद्धr(39)चौदह सौ तेंतीस की माघ सुधी पंद्रास ।
दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास ।ष्टद्धr(39) काशी,
बनारस, सीरमोवर्धनपूर में विक्रम सवंत 1433
(ई.स. 1377) को माघ शुद्ध पूर्णिमा दुखियों का
कल्याण करने के लिए ही भगवान रविदासजी का जन्म अस्पृश्य जाति में हुआ. उस समय कठोर
अस्पृश्यता ऊंच-नीच का पालन किया जाता था फिर भी गुरु रविदासजी का मानव कल्याणकारी
उपदेश सुनकर राजा नागरमल, राणा वीर बघेल सिंह, सिकंदर लोधी, माहाराणा संग्राम सिंह, राजा चंद्रप्रताप, राजा अलावदी बादशाह, बिजली खान, राणा रतन सिंह, महाराणा
कुं भाजी, महारानी झालीबाई, महान संत
मीराबाई, बेबी कर्माबाई, बेबी भानमति,
संत गोरखनाथ सहित सभी वर्गो के राजा - महाराजा गुरू रविदासजी के
शिष्य हुए. गुरु रविदासजी ने कभी भी अपनी जाति नही छिपाई. ष्टद्धr(39)मेरी जातिोब्ोखियात चमारष्टद्धr(39) ऐसा डंके की
चाटे पर कहते. गुरु रविदासजी महाराज ने समस्त चर्मकार समाज को गौरान्वित किया है.
अस्पृश्य समाज हिन्दू धर्म में गिने जाने के बाद भी वह सवर्ण हिन्दू नहीं है यह
सत्य बताते हुए गुरु रविदासजी कहते है. ष्टद्धr(39)चार बरण
बेद से प्रकट। आदि जनम हमाराष्टद्धr(39) ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र यह चार वर्ण वेदों से
प्रकट हुए है, ऐसा तुम कहते हो, लेकिन
चर्मकार समाज उससे भी पहले वेदपूर्व काल का है. इससे सवर्ण हिन्दू धर्म और चर्मकार
समाज का किसी भी रूप मे कोई भी संबंध नही है अर्थात चर्मकार समाज सवर्ण हिन्दू
धर्म से पूरी तरह अलग है और चर्मकार समाज सवर्ण हिन्दू धर्म में समाविष्ट नहीं है,
यह कहते हुए गुरू रविदासजी महाराज ने हिन्दू वर्ण व्यवस्था को पहला
धक्का दिया. ष्टद्धr(39)ष्टद्धr(39)मेरी
जाती कूट बांडता ढोर ढावंता, नितही बनारसी आस पासष्टद्धr(39)ष्टद्धr(39). काशी, बनारस के
पास बस्ती में रहने वाले मेरी जाति के लोग हर रोज मरे हुए जानवरों को खींचकर ले
जाने का काम करते हैं. ऐसा बताते हुए गुरू रविदासजी ने चर्मकार समाज का दुख विश्व
के सामने लाकर खडा किया और उनके लगभग प्रत्येक दोहे में ष्टद्धr(39)कहे रविदास चमाराष्टद्धr(39) कहकर संपूर्ण भारत के
गांव खेडे में बिखरे हुए चर्मकार समाज के हृदय में आदरयुक्त सम्मान, अपनेपन का स्थान निर्माण कर प्रेमानुबंध स्थापित किया, इसी कारण संपूर्ण भारत के चर्मकार समाज के आदर्श (आयडल) रहे भगवान
रविदासजी महाराज के नाम पर हमारा चर्मकार समाज एक संघ हो सकता है, इसका विश्वास है.
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