अस्पृशता हा हिंदू धर्मावरील कलंक नसून, तो आमच्या नरदेहावरील कलंक आहे. यासाठी, तो धुवून काढायचे पवित्र कार्य आमचे आम्हीच स्वीकारले आहे.- डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर | कभी हमारा अपना कोई धर्म था| उस धर्म कि धारा सुखी नाहि है| संतो ने उसे प्रवाहित रखा है. गुरु रविदास लिख गये है| धर्म के सार को| वे नया धर्म दे गये है| उस पर चलो| - बाबू जगजीवन राम

Saturday, February 15, 2014

परपूज्य डा. बाबासाहेब अम्बेडकर का हमारे अस्पृश्य समाज मे जन्म हुआ


परपूज्य डा. बाबासाहेब अम्बेडकर का हमारे अस्पृश्य समाज मे जन्म हुआ

संपूर्ण िहदूस्तान में 11 सौ जाति और 2० करोड आबादी होने के बावजूद भी आए दिन चमारो पर अमानुषिक अत्याचार की खबरे देश के किसी न किसी भाग से आती ही रहती है. कही उनके घर जलाने की, कहां उनको गोली से उडाने की, कही उनके कत्ल की. कही उन्हे गाँव से भगा देने की, कही उनके महिलाओं के शील-हरण की, ऐसे अत्याचार जिनकी कल्पना भी आज के सभ्य समाज मे नही की जा सकती. और यह अत्याचार उनके उपर विधर्मियों द्वारा नही किए जाते, सवर्ण हिन्दू द्वारा ही किऐ जाते है. इसलिए गुरु रविदासजी कहते है ष्टद्धr(39)ष्टद्धr(39)सतसंगति मिली एहीये माधो जैसे मधूम मखीरा.ष्टद्धr(39)ष्टद्धr(39) जिस तरह छत्ते के इर्द-गिर्द मधुमाक्खियाँ एक संघ, एकजूट होकर रहती है. और शत्रु पर टूट पडती है, उसी तरह चांभार, ढोर,मला, मादिगा, मोची, चमार, परमार, समगर, रेगर, आदि चमारों की जातियों मे विभक्त समाज को ष्टद्धr(39)रविदासियाष्टद्धr(39) नाम छत्ते के आसपास एक संघ, एकजूट होना ही हमारे समाज की सूरक्षा है. क्यों की छत्ते पर पथ्थर मारने की हिम्मत कोई नही करता. शेर के नाम से ही डरता है. 2० करोड जनसंध्या की ताकत वाला ष्टद्धr(39)रविदासीयाष्टद्धr(39) नाम ही हमारे समाज की सरु क्षा है. शिर्फ जरुरत है, ष्टद्धr(39)रविदासीयाष्टद्धr(39) नाम पर सर्वस्व समíपत करने की.
14 अप्रेल 1891 को परपूज्य डा. बाबासाहेब अम्बेडकर का हमारे अस्पृश्य समाज मे जन्म हुआ. उन्होने उम्र के 32 वर्षो तक शिक्षा ली. ई.स. 1913 से 1923 इन दस सालों के काल मे इंग्लैंड, अमेरिका में जाकर समाजशास्त्र, मानवंश शास्त्र, इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र आदि विषयों का अध्ययन किया और.एम.ए. पीएच.डी. (कोलंबिया), डी. एससी. (लंदन), एलएल. डी.(कोलंबिया), डी. लिट. (उस्मानिया), बार-एट लॉ (लंदन) उपाधियां सम्पादित की. उस समय 1919 मे पहली बार समस्त भारत के सात करोड अस्पृश्यों को मतदान का अधिकार मिले, ऐसी मांग साउथबरो कमीशन के सामने की. उसके पष्टद्धr(155)ात 1931 मे इंग्लड में हुए गोलमेज अधिवेशन में अस्पृश्यों का प्रश्न सामाजिक न रहकर राजनीतिक है और राजकीय समस्या के रूप में उसका विचार किया जाना चाहिए - एसा स्पष्ट करते हुए समस्त अस्पृश्यों के दुख विश्व के सामने लाकार रखा. अस्पृश्य समाज स्वतंत्र वर्ग है, यद्यपि हिन्दू समाज में समावेश किया गया है फिर भी किसी भी रूप से हिन्दू समाज का एक जिव, घटक नही है. इसी वजह मुसलमान, ईसाई, सिख की तरह अस्पृश्यों को भी स्वतंत्र राजकीय सत्ता में योग्य हिस्सा मिलना चाहिए, यह मांग परमपूज्य डा. बाबासाहेब अम्बेडकर ने की. परमपूज्य डा. बाबासाहेब अम्बेडकर की इस मांग का महात्मा गांधी ने तीक्र विरोध किया और कहा, मुसलमानों को जो भी चाहिए वह दूंगा, ईसाई समाज को मैं आवश्यक जो भी हो दे दूंगा, युरोपियन अथवा एंग्लो इंडियन के हक को मैं न्याय करुंगा, सिखों की मांगो को बहाल करूंगा, लेकिन अस्पृश्य समाज को सूई की नोंक जितने अधिकार भी मैं मान्य नही करूंगा. भारत के 7 करोड अस्पृश्यों के राजकीय अधिकार व हक का इतना तिवृ विरोध महात्मा गांधी ने किया. जरा सोचिए ! इस आपातकालीन काल में यदि परमपूज्य डा. बाबासाहेब अम्बडे कर नही होते तो हम कहां होते?

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