रविदासिया सर्वश्रेष्ठ धर्म
धर्म मनुष्य के लिए है, मनुष्य धर्म के लिए नहीं. जीवित
रहने के लिए मनुष्य को, काल, स्थान,
परिस्थिती के अनुसार हमेशा परिवर्तन करते हुए जीना पडता है, इसलिए विश्व के किसी भी धर्मी को क्या खाना है, क्या
पीना है, क्या पहनना हे, कैसे उठना हे,
रविदासिया सर्वश्रेष्ठ धर्म, जय रविदास ! जय भीम !! जय गुरुदेव !!! |
कैसे बैठना है, कैसे सोना है आदि परिवर्तनशील सामाजिक रूप मे धर्म
हस्तक्षेप नही करता. धर्म का मुख्य अंग ईश्वर और मनुष्य के आध्यात्मिक संबंध और
सामाजिक नीतिमूल्य जतन करने हेतू नीति-नियम तय कर धारण करनेवाले समाज समूह की अलग
पहचान निर्माण करना है. भक्ति, गुरु भेंट, गुरू बोध और नाम साधना यह मूल तत्व भगवान रविदासजी ने अपने रविदासिया धर्म
में बताए है. अलग - अलग रूप में सभी धर्मो का आधार अनादि अनंत परमेश्वर माना है.
कोई प्रकृति के नियमों को देव मानता है तो कोई पथ्थर मे भगवान को देखता है. कोई
अपने मन मे भगवान का स्थान खोजता है तो कोई नाम में भगवान को देखता है, इसलिए भगवान की संकल्पना लगभग सभी धर्मो ने मान्य की है. इस वजह केवल पूजा,
आराधना, उपासना करने के नीति-नियम प्रत्येक
धर्म के अलग अलग है. अत: पूजा, आराधना, उपासना पद्धति में उस धर्म की स्वतंत्र पहचान होती है, सही सिद्ध होता है. भगवान रविदासजी ने अपनी गुरु वाणी में अपने रविदासिया
धर्म की पूजा पद्धती बताई है.
माई गोिवद पूजा कहा ले चरावउ । अवरू न फू लु
अनूपु न पावउ ॥ रहाउ ॥
दृधुत बछरै थनहु बिटारिओ । फूलु भवरि जलु मी
न्ो बिगारिओ ॥1॥
मैलागर बेर्हे भुगअंगा । बिखु अंम्रित बसहि
इस संगा ॥2॥
धुप दीप नईबेदहि बासा । कैसे पूज करहि तेरी
दासा ॥3॥
तनु मनु अरपउं फुल चरावउ । गुर परसादि
निरंजनु पावउ ॥4॥
पुजा अरचा आहि न तोरी । कहि रविदास कवच गति
मोरी ॥5॥
गुरु रविदास कहते है, कोई भी फूल मुझे पूजा के योग्य लगता नहीं तब हे माते मै
क्या अर्पण करूं और गोिवद की पूजा करु क्योंकि फूल भंवरो ने, पानी मछलियो ने, दूध गाय के थन में ही बछडे ने झूठा
किया है और चंदन वृक्ष को भुजंग ने लपेटने से विष और अमृत एकसाथ रहते है, धुप, दीप भोग बासी होने से वे भी पूजा के योग्य नही
है. इसलिए है प्रभू इस सेवक को तुम्हारी पूजा किससे करनी चाहिए और जब तुम्हारी
पूजा-आराधना मै नही कर सका तो मेरी क्या गति होगी? यह मैं
जानता हूं. अत: हे प्रभु गुरु कृपा से निर्मल, पवित्र हुए
मेरे तन - मन रूपी फूल अर्पण कर तम्ॅ हारी पूजा-आराधना करता हूं.
गुरु रविदास कहते है - ष्टद्धr(39)तेरो किआ तुझही किआ अरपउ ।ष्टद्धr(39) हे प्रभु जिसे तूने निर्माण किया है उसे तुझे ही अर्पण करने का क्या अर्थ
है? अर्थात फूल चढाकर अगरबत्ती, मोमबत्ती
जलाकर, दूध, चंदन का अभिषेक कर,
होम हवन कर प्रभु परमेश्वर की पूजा आराधना भक्ति नहीं की जाती तो
अपना कहकर जो मेरे पास है अर्थात वह भी तुम्हारा ही है, ल२किन
यही मेरा तन - मन प्रभु चरण में अर्पण किया तो ही सच्ची पूजा भक्ति आराधना होती है
ओर भक्ति तभी सफल होती है जब मनुष्य को गुरु मिलता है और गुरु बोध होता है इसलिए
गुरु ब्रह्म वक्ता,, ब्रह्मा श्रोत्री , ब्रह्मनिष्ठा है यह जानकर उसने असीम प्रेम करें. गुरु रविदासजी कहते है,
जो मनुष्य अंतर्मुख होकर सोहम् - सोहम् के उच्चार से प्रभू का नाम
अखंड ध्यान करता है उसके तीनो ताप नष्ट होते है. इससे कर्मकांड विरहित अखंड नाम
साधना भगवान रविदास के रविदासिया धर्म की पूजा आराधना पद्धति है, स्पष्ट हो जाती है. गुरू रविदासजी महाराज कहते है, सोहम्
- सोहम् उच्चारण करने से श्रेष्ठ पुरुष प्रभू परमेश्वर से प्रेम भाव
निर्माण होता है. सोहम् सोहम् उच्चारण करने से अपनी कभी हार नही होती. यह गुरू का
दिया हुआ गहन नाम है इसलिए दूसरा कुछ खोजने की आवश्यकता ही नही रहती. यह गुरुदेव
का भजन होने से मनुष्य के मन मे कोई डर नही रहता. शाम व ध्यान समय सोहम् सोहम्
उच्चारण करने से मनुष्य को कोई भी बाधा नही होती इसलिए मनुष्य का मन निर्मल होकर करण
कारण से अलग प्रभु परमेश्वर की भेंट होती है. गुरु रविदास महाराज कहते है, सोहम् सोहम् के उच्चारण से मनुष्य का मन शांत होता है और मनुष्य नीति
मार्ग का आचरण करता है. नीतिमान मनुष्य के हृदय में दया, अिहसा,
मैत्रीभाव जागरुक होकर वह सद्मार्ग का आचरण करता है इसलिए अनायास ही
मनुष्य का दुख नष्ट हो जाता है यही रविदासिया धर्म का मूल तत्व है. भारतीय मिट्टी
की सुगंधवाली हिन्दी गुरु रविदासजी महाराज की मात्र भाषा है. हम सभी की
राष्ट्रभाषा बोली भाष हिन्दी रविदासिया धर्म की धर्म भाषा है. इससे रविदासिया धर्म
की महानता ध्यान में आती है. गुरु रविदास ने कर्मकांड का संपूर्ण खंडन करने से हमे
धर्म दीक्षा की आवश्यकता नही रहती. हमारे मूल, हमारे कुल
रविदास होने से हम जन्म से ही रविदासिया है.
रविदासिया समाज बंधुओं को महत्वपर्ण सूचना Tags : रविदासिया सर्वश्रेष्ठ धर्म, Achutrao Bhiyite, जय रविदास ! जय भीम !! जय गुरुदेव !!!,
No comments:
Post a Comment