अस्पृशता हा हिंदू धर्मावरील कलंक नसून, तो आमच्या नरदेहावरील कलंक आहे. यासाठी, तो धुवून काढायचे पवित्र कार्य आमचे आम्हीच स्वीकारले आहे.- डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर | कभी हमारा अपना कोई धर्म था| उस धर्म कि धारा सुखी नाहि है| संतो ने उसे प्रवाहित रखा है. गुरु रविदास लिख गये है| धर्म के सार को| वे नया धर्म दे गये है| उस पर चलो| - बाबू जगजीवन राम

Saturday, February 15, 2014

हमें अपनी जाति का अभिमान होना चाहिए


हमें अपनी जाति का अभिमान होना चाहिए
जय रविदास ! जय भीम !! जय गुरुदेव !!!,


झूठे हिन्दू धर्म में समाविष्ट बहिष्कृत, अस्पृश्य, हरिजन, दलित जाति कलंकित, अपवित्र है, ऐसा मानकर हिन्दू धर्मशास्त्राह ने मान्यता देने से उन जातियों को अप्रतिष्ठा प्राप्त हुई है. हिन्दू धर्म के सबसे निचलेस्तर पर समझे जाने वाले हमारे समाज का जीवित रहने का अधिकार हिन्दू धर्मशास्त्राह ने छीन लिया है. आज हमारी जाति को मिल रही सहूलियतें, संवैधानिक अधिकार भारतीय संविधान ने दिए है. हिन्दू धर्मग्रंथमें सुधार (अमेंटमेंट) कर हमें अधिकार नहीं दिए, इसलिए आज भी हम हिन्दू धर्मशास्त्राह के अनुसार कलंकित, अपवित्र ठहरते है. हमारे समाज की यह अवस्था किसी भी एक व्यक्ति या समाज ने नही की, जिस हिन्दू धर्म को हम अपना धर्म समझते है उस धर्म के धर्मग्रंथों द्वारा विहित तत्व नियम, कानून से हमारे समाज की यह अवस्था हुई है और हिन्दू धर्म के नियम, कानून, सानातनी होने से वे बदले भी नही जाते. हमारी इस अवस्था के लिए सवर्ण बहुजन हिन्दू जाति का व्यक्ति या समाज जिम्मेदार नहीं है, वे तो केवल हिन्दू धर्मशाधिं में विहित नियमों का पालन कर रहे है.
हम जब तक हिन्दू धर्म से जुडे रहेंगे तब तक हिन्दू धर्मशास्त्राह के नियम व कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या समाज की इच्छा रहे न रहे हिन्दू के हमारे कलंकित दर्जे अपवित्र ही रहेंगे और इससे धार्मिक, सामाजिक हक के लिए हिन्दू धार्मियों से हमेशा लडते रहना होगा. दलितों के ऊपर अत्याचार का मूल कारण दलितों ने धार्मिक सामाजिक हक के लिए किए संघर्ष व उससे दलित और सवर्ण हिन्दू जाति के बीच हुई कटुता है और इसलिए स्वतंत्र रविदासीया धर्म स्वीकार करने से झगडे के लिए कोई कारण ही बाकी नही रहेगा.
विश्व के किसी भी धर्म में किसी भी व्यक्ति अथवा समाज को प्रवेश लेने की सहूलियत है, परंतु हिन्दू धर्म में प्रवेश लेने के लिए सवर्ण हिन्दू माता के पेटे से ही जन्म लेना पडता है. धर्म दीक्षा लेकर अथवा धर्मातर कर हिन्दू धर्म में प्रवेश नही लिया जा सकता अर्थात अस्पृश्यों को सवर्ण हिन्दू नही बनाया जा सकता. यह सूर्य प्रकाश की तरह इसके सत्य को नजर अंदाज करते हुये, साधु, संत, महात्मा, समाज सुधारकों ने हिन्दू धर्म से पूर्णरूप से अलग हुए परंतु जीनका स्वतंत्र धर्म नही है, यह जानते हुय भी अस्पृश्य समाज को समाजसुधारक का केंद्र बनाकर हिन्दू धर्म से जोडकर हिन्दू धर्म तुम्हारा ही है. हमें अपनी जाति का अभिमान होना चाहिए गर्व से कहो हम हिन्दू है, इस प्रकार के जाति भेद अस्पृश्यता नष्ट करने की बडी-बडी बातें कर हिन्दू धर्म के वर्तुल के बाहर रखने हिन्दत्३ व की मोहर लगाकर जैसे है वैसी ही स्थिति में छोड दिया. इसी धरती पर आजकल के हमारे समाज के नेता, लेखक, चिंतक, बामसेफ वाले काम कर रहे है.
परमपूज्य डा. बाबासाहेब अम्बेडकर ने अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करते समय 15 ऑगस्त 1936 को स्वतंत्र मजदूर पक्ष की स्थापना की. उस पार्टी से मुंबई मे चुनाव भी लडे, परंतु उसके बाद ब्रिटिश सरकार के स्टैनली कमेटी के सामने गवाही देते समय तुम अस्पृश्यों के नेता कैसे? तुम्हारी पार्टी तो सभी जाति धर्मियों की है, ऐसी हरकत लिए जाने से उसी क्षण परमपूज्य डा. बाबासाहेब अम्बेडकर ने मजदूर पार्टी को बर्खास्त किया और 2० जूलै 1942 नागपूर मे  शेडय़ूल्डकास्ट फेडरेश नाम का बहिष्कृत अस्पृश्य वर्ग का स्वतंत्र राजकीय पार्टी स्थापित कर देशभर के तमाम अस्पृश्य समाज की व्यथा स्टेनली कमेटी के सामने रखी. आज भी 2० करोड अस्पृश्य समाज हिन्दू धर्म के पांव के पास हरिजन दलित के रूप मे सवर्ण हिन्दू बहुजन समाज के दबाव तले जी रहा है. और हमारे समाज के नेता, लेखक, चिंतक, बामसेफ वाले अस्पृश्य समाज की ओर पीठ दिखाकर सवर्ण हिन्दू बहुजन समाज के लिए जी-जान से काम कर रहे हैं और यह जानते हुए कि, इससे अस्पृश्य समाज को कोईभी लाभ नही होगा. ब्राह्मणवाद, मनूवाद, वर्णजात और देवी देवताओं पर टिका टिपण्णी करने मे ही गर्व महसस्३ो कर रहे है. यह हमारे समाज का दुर्भाग्य नही तो ओर क्या ह?
ब्राह्मणवाद, मनुवाद, जातीवाद, वर्ण, जाति, देवी, देवता श्रद्धा-अंधश्रद्धा यह हिन्दूस्तान के चमारों की समस्या नही है. प्रचलीत कानून, अंतर जातिय विवाहों के चलते भविष्य मे यह खलास नही हुयी तो भी इसकी तिवृता जरुर कम हो जाएगी. चमारों की बडी समस्या है, उनका अपना कोई धर्म नही है. यही कारन है की संपूर्ण हिन्दूस्तान मे 11 सौ जाति 2० करोड से भी ज्यादा जनसंख्या, व्यवसायीक समानता, एकजैसी पहचान होने के बावजूद भी चमार जाति एक संघ नही है.
दूसरी और सवर्ण हिन्दू समाज अनेक वर्ण जातियों मे बटा हुआ उपरी तौर पर हमे दिखाई देता है. वे अनेक पक्ष पार्टीयों के प्रमुख बने बैठे है. एक दूसरे के उपर किचड उछालते नही थकते. परंतु हिन्दू धर्म के नाम पर एक संघ हो जाते है. और देवि देवताओं के उत्सवों में अपनी ताकत दिखाते है. मुस्लिम समाज मे भी अनेक पंथ जाति है. मुसलमान सभी पक्ष पार्टयिों मे शामील है. फिर भी मुस्लिम धर्म के नाम पर मस्जिदो में एक हो जाते है. इसाईयों मे अनेक पंथ जाति है. वे सभी पक्ष पार्टयिों में शामील है. परंतु इसाई धर्म के नाम पर चचरे मे एक संघ हो जाते है.
अभि-अभि तक अस्पृशों का ही भाग रहे बौद्ध समाज अनेक पक्ष पार्टयिों मे शामील है. बौद्ध धर्म के नाम पर बौद्ध विहारों मे एक संघ हो जाते है. परंतु चमारों का अपना कोई धर्म नही है. ना कोई मंदिर, ना कोई मस्जिद , ना कोई चर्च है. व तो दूसरों के धर्म को ही अपना धर्म मानते है. दूसरों के मंदिरो मे ही जाते है. तो सोचिये 11 सौ जातियों मे बिखरे चमार एक संघ कैसे और कहां पर होते. यही कारण है कि भारत के इतिहास मे सदीयों से करोडो अस्पृश्यों के साथ जानवरों जैसा बल्की उससे भी बदतर व्यवहार किया जाता रहा उन्होने कभी विद्रोह नही किया. इसलिए जिस प्रकार हिन्दू - मंदीर, मुस्लिम - मसजिद, सिख - गुरूद्वारा, इसाई - चर्च, बौद्ध - बौद्ध विहार गांव-कस्बों मे अपने धर्म की धरोहर निर्माण करने मे जि जान लगा देते है. उसी प्रकार हमे भी प्रत्येक गांव-कस्बों के अपनी चमार बस्तियोंमे रविदास मंदिर और तहसिल स्तर पर रविदास भवन बनाने के लिए हमे अपना सर्वस्व अर्पण करना होगा. तभी हमारी आगामी पिढीया रविदासीया धर्म के नाम पर रविदास मंदीरों मे एक संघ होगी.

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